Transformer क्या है? अविष्कार, प्रकार, पार्ट्स और कार्य 

इलेक्ट्रिसिटी का उत्पादन तो कई तरीकों से किया जाता है, लेकिन क्या आप बता सकते है कि इसे घरों तक पहुंचाया कैसे जाता है? आपमें से अधिकांश लोगों को इसके बारे में पता नहीं होगा, किंतु जिसके माध्यम से बिजली का वितरण किया जाता है, उसका नाम जरूर सुना होगा। जवाब है ट्रांसफार्मर, यह वहीं यंत्र है जो विद्युत ट्रांसफर करने में मदद करती है। आज हमको बताएंगे कि Transformer क्या है, इसके क्या क्या कार्य होते है और ढेर सारी जानकारियां आपके साथ साझा करेंगे।

आपने भी अपने जीवन में इस मशीन को जरूर देखा होगा, कुछ छोटे आकार के होते है, जिसे घर में इस्तेमाल किया जाता है। वहीं कुछ काफी बड़े होते है, जिसे पोल में लगाया जाता है और उसी के द्वारा किसी मुहल्ले में बिजली की सप्लाई की जाती है। आज हम इस लेख में उसी के बारे में बताने वाले है, किसने अविष्कार किया और कितने प्रकार होते है, इत्यादि। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़ें ताकि सारे कॉन्सेप्ट क्लियर हो जाएं। 

Transformer क्या है?

Transformer एक प्रकार का इलेक्ट्रिक डिवाइस है, जिसे बिजली के सहारे ही ऑपरेट किया जाता है। इसी की मदद से विद्युत ऊर्जा को एक स्थान से दूसरे स्थान तक ले जाया जाता है, इसकी संरचना कुछ उसी तरह बनाई गई है कि इलेक्ट्रिक पावर को रिसीव और डिलीवर करने का काम अच्छे से कर पाएं। 

जब इलेक्ट्रिक पावर को ट्रांसफॉर्मर द्वारा रिसीव किया जाता है, तो वह कार्य प्राइमरी वाइंडिंग करती है। इसके बाद जब बारी है इलेक्ट्रिक एनर्जी को डिलीवर करने की, तो यह काम सेकंडरी वाइंडिंग का होता है। इसका इस्तेमाल A.C. सप्लाई में भी किया जाता है ताकि उसे कम ज्यादा करने में कुछ अतिरिक्त काम ना करना पड़ें।

इसके अलावा D.C. मशीनों में भी इसे उपयोग किया जाता है, जिसका संचालन A.C. supply द्वारा किया जा रहा हो। सरल शब्दों में कहा जाएं, तो D.C. उपकरणों को भी A.C. सप्लाई से ऑपरेट इसी की मदद से किया जाता है। 

ट्रांसफॉर्मर का इस्तेमाल बड़े स्टेशनों में भी किया जाता है, गली मुहल्ले में भी और घरों में छोटे आकार का उपयोग किया जाता है। जिसकी जितनी आवश्यकता, उसी के अनुसार इसके साइज बदलते रहते है। 

ट्रांसफॉर्मर की संरचना कैसी होती है?

जब बात आती है ट्रांसफार्मर के संरचना की तो तीन ही पार्ट के साथ इसकी व्याख्या की जाती है। उन्हीं के साथ हम आपको इसके स्ट्रक्चर के बारे में बताते है। 

1. प्राइमरी वाइंडिंग

जब ट्रांसफॉर्मर को किसी इलेक्ट्रिक पावर के साथ जोड़ा जाता है, तब प्राइमरी वाइंडिंग में ही मैग्नेटिक फ्लक्स उत्पन्न होती है। इसके बाद ही आगे का कार्य पूर्ण होता है। 

2. मैग्नेटिक कोर

दूसरा अहम हिस्सा होता है मैग्नेटिक कोर, जब प्राइमरी वाइंडिंग से मैग्नेटिक फ्लक्स गुजरता है, तब मैग्नेटिक कोर में closed magnetic circuit का उत्पादन होता है। यहीं कोर सेकंडरी वाइंडिंग से भी जुड़ा होता है, इसी के कारण हमें आउटपुट की प्रक्रिया पूरी करने में मदद मिलती है। 

3. सेकंडरी वाइंडिंग

प्राइमरी वाइंडिंग से उत्पन्न हुई फ्लक्स को कोर के जरिए पास किया जाता है। इससे सेकंडरी वाइंडिंग में भी एसी सप्लाई का प्रवाह शुरू हो जाता है और अंत में आउटपुट विद्युत की उत्पति होती है। 

ट्रांसफार्मर किस सिद्धांत पर कार्य करता है?

ट्रांसफॉर्मर Electromagnetic Induction के म्यूचुअल इंडक्शन सिद्धांत पर कार्य करता है। इस कॉन्सेप्ट को देने वाले भी माइकल फराडे ही थे, इसीलिए इसे फराडे लॉ ऑफ इलेक्ट्रोमैग्नेटिक इंडक्शन भी कहा जाता है। प्रमुख रूप से इस डिवाइस के तीन पार्ट होते है, मैटेलिक कोर और दो वाइंडिंग होती है (कॉपर से बने हुए)।

जब प्राइमरी वाइंडिंग में अल्टरनेटिंग करेंट को प्रवाहित किया जाता है, तो coil में मैग्नेटिक एरिया उत्पन्न हो जाती है। इसके कारण सेकंडरी वाइंडिंग के मैग्नेटिक फ्लक्स में बदलाव आता है और Electromagnetic Induction के अनुसार दूसरे वाइंडिंग में भी अल्टरनेटिंग करेंट बहने लगता है।

अब दोनों ही coil में एकसमान frequency का ऑल्टरनेटिव वोल्टेज भी पैदा हो जाता है, जिस frequency का वोल्टेज प्राइमरी वाइंडिंग में लगाया गया था। 

ट्रांसफार्मर का अविष्कार किसने किया था? 

एक तरह से कहा जाएं तो ट्रांसफॉर्मर के बिना घर में विद्युत आ जाएं, ऐसा असंभव है। इस अति आवश्यक डिवाइस का अविष्कार 1831 में माइकल फैराडे ने ब्रिटेन में किया था।

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ट्रांसफार्मर के क्या क्या पार्ट्स होते है?

हालांकि, हमने आपको सिर्फ तीन ही पार्ट के बारे में मुख्य रूप से बताया है, लेकिन इसके और भी अन्य भाग होते है। आइए, ट्रांसफार्मर के सारे पार्ट्स के बारे में विस्तार से जानते है। 

1. इनपुट कनेक्शन

जिस तरफ से इलेक्ट्रिक पावर जुड़ा होता है, उसे ही प्राइमरी कनेक्शन कहा जाता है। इसी से पूरी डिवाइस का संचालन होता है। 

2. आउटपुट कनेक्शन

इसी कनेक्शन से लोड के अनुसार इनपुट पावर को घटाया या बढ़ाया जाता है। यह एक सेकंडरी पार्ट है, जहां पर इलेक्ट्रिक पावर को भेजा जाता है। 

3. Winding 

वाइंडिंग दो तरह का होता है, प्राइमरी से इनपुट कनेक्शन को जोड़ा जाता है। दूसरा होता है सेकंडरी, जहां से आउटपुट कनेक्शन निकाला जाता है। 

4. Core 

इसके द्वारा मैग्नेटिक फ्लक्स को जेनरेट किया जाता है, इसे सिलिकॉन स्टील की पत्तियों से बनाया जाता है।

इसके दो फॉर्म आते है, एक Core aur दूसरा Shelle, दोनों में से किसी का भी इस्तेमाल किया जा सकता है। यह एक तरह का Control Path सिस्टम रहता है। 

5. Coil

इनपुट और आउटपुट के साथ इन्हें जोड़ा जाता है, जहां से इनपुट और आउटपुट लिया जाता है। इन्हीं दोनों तारों को जो मिलाकर कर रखता है, उसे ही Coil कहते है। 

6. Insulated Sheet

इस शीट को प्राइमरी और सेकंडरी वाइंडिंग के बीच में लगाया जाता है, जिससे शॉर्ट सर्किट को रोका जा सकें। लंबे समय तक ट्रांसफॉर्मर को चलने में भी यहीं शीट मदद करता है। 

7. Oil Level Indicator

कन्वर्टर टैंक में ऑयल भरा जाता है, इसी को मापने के लिए ऑयल लेवल इंडिकेटर का इस्तेमाल किया जाता है। 

8. Oil Filling Pipe

इसी पाइप के जरिए टैंक तेल डाला जाता है, ताकि ट्रांसफॉर्मर को ठंडा रखा जा सकें। इस ऑयल फिलिंग पाइप को सिर्फ बड़े ट्रांसफॉर्मर में ही लगाया जाता है। 

9. Conservator Tank

ट्रांसफॉर्मर के थ्री फेज टाइप में इस टैंक को लगाया जाता है, इसके अंदर तेल डाला जाता है ताकि यह पूरे सिस्टम को ठंडा करके रखें। इसे थ्री फेज टाइप का सबसे अहम हिस्सा माना जाता है ताकि गर्मी को कंट्रोल किया जा सकें। 

10. Radiator Fan 

इस पंखे के सहारे डिवाइस को ठंडा रखा जाता है, काफी देर तक चलने से ट्रांसफॉर्मर गरम हो जाता है और इससे प्राइमरी या सेकंडरी वाइंडिंग के जलने का डर रहता है। इसी कारण से रेडिएटर फैन लगाएं जाते है, जो इसे नुकसान से बचाए रखता है। 

ट्रांसफार्मर कितने प्रकार का होता है?

ट्रांसफॉर्मर को विभिन्न वर्गीकरणों ने बांटा गया है और हर वर्गीकरण के अनुसार इसके प्रकार भी भिन्न है। आपको यहां सबके बारे में विस्तारपूर्वक उल्लेख किया जाएगा। 

1. Core की संरचना के अनुसार

a. Shell Type

इसे बनाने में E और I साइज के पत्तियों को जोड़ा जाता है, इसमें तीन लिम्ब होते है, जिनमें से एक पर दोनों की वाइंडिंग की जाती है और अलग से बीच वाले लिंब पर भी वाइंडिंग की जाती है। जिसका एरिया दोनों साइड से डबल होता है और कम वोल्टेज वाली वाइंडिंग कोर के पास ही की जाती है।

ज्यादा वोल्टेज वाली वाइंडिंग को कम वोल्टेज वाले वाइंडिंग के ऊपर किया जाता है। इससे इन्सुलेशन करने में आसानी होती है और Flux के दो रास्ते भी बन जाते है। 

b. Core Type

दूसरा प्रकार होता है Core Type, इसे L साइज में सिलिकॉन स्टील पत्तियों से बनाया जाता है, इन पत्तियों को इन्सुलेट करके जोड़ा जाता है। यह देखने में आयताकार दिखता है और टोटल चार लिंब होते है, दो आमने सामने वाले लिंबो की वाइंडिंग की जाती है। इसमें Flux के लिए एक ही रास्ता दिया जाता है और काफी हाई वोल्टेज का उपयोग किया जाता है। 

2. Output Voltage के अनुसार

a. Step Up Transformer

इस ट्रांसफॉर्मर में इनपुट वोल्टेज को बढ़ाकर उससे अधिक आउटपुट उत्पन्न किया जाता है, उसे स्टेप अप ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है। इसमें सेकंडरी वाइंडिंग में अधिक coil के को लपेटा जाता है, इसके उपयोग हम घरों में इन्वर्टर में किया करते है। 

b. Step Down Transformer

स्टेप अप के ठीक विपरीत, जिस ट्रांसफॉर्मर से वोल्टेज को घटाकर कम आउटपुट का विद्युत प्रभाव किया जाता है, उसे ही स्टेप डाउन ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है। इसका इस्तेमाल हमलोग खास करके डायरेक्ट करेंट से चलने वाले डिवाइस को ऑपरेट करने के लिए करते है। जिससे अधिक वोल्टेज को D.C. वोल्टेज सप्लाई में बदला जा सकें। 

3. Phase के अनुसार

a. Single Phase

इस सिंगल फेज में वोल्टेज को कम या अधिक करने का कार्य पूर्ण किया जाता है। इसमें दो वाइंडिंग होती है, प्राइमरी और सेकंडरी, जिसमें प्राइमरी वाइंडिंग के माध्यम से सिंगल फेज की इलेक्ट्रिसिटी सप्लाई दी जाती है। आगे सेकंडरी वाइंडिंग में इस सिंगल फेज इलेक्ट्रिक सप्लाई को स्टेप अप या स्टेप डाउन की तरह आवश्यकता अनुसार लिया जाता है। 

b. Three Phase

जो ट्रांसफॉर्मर ऑल्टरनेटिव करेंट के लिए कार्य करता है, उसे थ्री फेज ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है। इसमें तीन प्राइमरी और तीन सेकंडरी वाइंडिंग लगी रहती है। इनका इस्तेमाल 66,110,132,440 KVA स्टेप अप करके ट्रांसफर करके किया जाता है। पूरे देश में बिजली डिस्ट्रीब्यूशन का काम इसी थ्री फेज प्रकार से किया जाता है। 

ट्रांसफार्मर का क्या कार्य होता है?

आपने ट्रांसफॉर्मर के बारे में सारी जानकारी पा ली है, लेकिन अभी भी एक अहम भूमिका जानना बाकी है। आखिर ट्रांसफॉर्मर का कार्य क्या होता है, क्यों यह इतना महत्वपूर्ण है। इन सबके बारे में यहां आपको बताते है कि इसका काम क्या होता है। 

  • ट्रांसफॉर्मर को सबसे अधिक वोल्टेज कंट्रोल करने में किया जाता है। इसकी सहायता से वोल्टेज को कम या ज्यादा किया जाता है। यह कार्य काफी आसानी से पूर्ण भी किया जाता है, जिससे एक सर्किट से दूसरी सर्किट को अच्छे से ऑपरेट करने में सुविधा होती है। 
  • कभी कभी इसके उपयोग से किसी सर्किट को दूसरे से आइसोलेट भी किया जाता है। ऐसे ट्रांसफॉर्मर को आइसोलेशन ट्रांसफॉर्मर कहा जाता है। 
  • घरों में बिजली के वितरण में भी इसका इस्तेमाल किया जाता है, उसके लिए थ्री फेज ट्रांसफॉर्मर का उपयोग करते है। 
  • प्राइमरी और सेकंडरी वाइंडिंग की मदद से मैग्नेटिक फील्ड को भी कंट्रोल किया जाता है ताकि उसका सही जगह पर इस्तेमाल किया जा सकें। 
  • डायरेक्ट करेंट से चलने वाले डिवाइस को भी ट्रांसफॉर्मर की सहायता से ऑल्टरनेटिव करेंट के माध्यम से संचालित कर सकते है। 

निष्कर्ष:- 

हमें आपसे उम्मीद है कि हर डाउट आपके अब क्लियर हो गए होंगे। ट्रांसफॉर्मर के माध्यम से ही हमें अपने घरों में इलेक्ट्रिसिटी की सुविधा उचित मात्रा में मिलती है। ट्रांसफॉर्मर वोल्टेज लेवल को बैलेंस करने में काम आता है, तभी हमारे घर उपकरण डैमेज होने से बचे रहते है। आज हमने आपको बताया कि Transformer क्या है और इससे संबंधित सारी महत्वपूर्ण डिटेल भी शेयर कर दिया है। यदि आपको यह लेख पसंद आया हो, तो हमारे कॉमेंट बॉक्स में जरूर बताएं और अपने दोस्तों के साथ साझा भी करें। आपसे एक नए पोस्ट के साथ फिर मिलेंगे, पेज का नोटिफिकेशन ऑन कर दे। 

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