भाषा क्या है? जाने भाषा की परिभाषा, भेद और विशेषताएं

आप अपने मन की बात कैसे बताते है? जवाब है भाषा के जरिए। भाषा हमारे मुंह से निकलने वाले शब्दों और वाक्यों का वह समूह है, जिसके द्वारा हम अपनी बातें प्रकट करते है। दूसरे शब्दों में कहें तो भाषा वह ध्वनि है, जिससे हम अपने विचारों का एक दूसरे से आदान प्रदान कर पाते है। 

आज के इस लेख में हम आपको भाषा क्या है, उसके कितने भेद है, लिपि क्या होती है और हमारे देश में कितनी भाषाएं बोली जाती है, इत्यादि के बारे में बताएंगे। इस आर्टिकल को अंत तक पढ़े और अपने ज्ञान में वृद्धि करें। 

भाषा की परिभाषा

भाषा वह साधन है, जिसके जरिए हम सोचते है और अपने मन के विचारों को दूसरों के सामने प्रकट करते है। कोई भी व्यक्ति अपने भावनाओं, इच्छाओं या अनुभूतियों को भाषा से ही बताता है। विभिन्न महान व्यक्तियों की नज़र में भाषा की परिभाषाएं भी विभिन्न है। 

रामविलास शर्मा के अनुसार, एक भाषा कई लिपियों में लिखी जा सकती है, और दो या अधिक भाषाओं की एक ही लिपि हो सकती है। भाषा संस्कृति का वाहन है और उसका अंग भी। 

तो वहीं दूसरी तरफ स्वीट के अनुसार, ध्वन्यात्मक शब्दों द्वारा विचारों को प्रकट करना ही भाषा है। इसके अलावा प्लेटो ने भाषा और विचार के बारे में अपनी एक अलग परिभाषा दी है, उनके अनुसार, विचार और भाषाओं में थोड़ा ही अंतर है, विचार आत्मा की मूक या अध्वन्यात्मक बातचीत है पर वही जब ध्वन्यात्मक होकर होठों पर प्रकट होती है तो उसे भाषा की संज्ञा देते हैं। 

डॉ श्यामसुंदरदास ने भी भाषा को परिभाषित किया है, मनुष्य और मनुष्य के बीच वस्तुओं के विषय अपनी इच्छा और मति का आदान प्रदान करने के लिए व्यक्त ध्वनि संकेतों का जो व्यवहार होता है, उसे भाषा कहते है। डॉ बाबूराम सक्सेना ने भी अपने अनुसार भाषा की परिभाषा दी है, जिन ध्वनि चिन्हों द्वारा मनुष्य परस्पर विचार विनियम करता है उसको संपूर्ण रूप से भाषा कहते है। 

हमारे जीवन में भाषा का क्या महत्व है?

भाषा के बिना जीवन की कल्पना कर पाना असंभव है, भाषा के द्वारा ही हम अपने प्रतिदिन के कार्य पूर्ण कर पाते है। भाषा की विभिन्न रूपों के जरिए हमारा जीवन गुजरता है, लिखित हो या मौखिक, इसका उपयोग हम हर दिन करते है। कुछ प्रमुख बातों से आप इसका महत्व समझ सकते है। 

  • भाषा से ही हमें ज्ञान की प्राप्ति होती है, यदि लिखित रूप में हमें पुस्तकें नहीं मिलती, तो आज हम सब निरक्षर होते। 
  • भाषा मानव के विकास का मूल आधार है, हमारी भाषा ही हमारे जड़ के बारे में बताती है। 
  • भाषा ही राष्ट्रीय एकता का आधार होती है, इसके द्वारा ही विभिन्न क्षेत्रों में परस्पर रिश्ते बने रहते है। 
  • अपने भाषा को ही वैज्ञानिक और मानव विकास का मूल आधार माना जाता है। 
  • भाषा की मदद से ही व्यक्ति अपने भावों का आदान प्रदान करता है। 

भाषा के कितने भेद होते है?

प्रमुख रूप से भाषा के तीन भेद होते है, इन्हें लिखने, बोलने और संकेतों के आधार पर बांटा गया है। 

1. मौखिक भाषा

जिन विचारों या भावनाओं को हम बोलकर प्रकट करते है, उसे मौखिक रूप बोला जाता है। इसमें दो लोगों की आवश्यकता होती है, एक वक्ता होता है जो अपनी बातों को साझा करता है और दूसरा श्रोता होता है, जो उसकी बातों को सुन कर उसके विचारों को समझता है। अर्थात, जिस ध्वनि को बोलकर हम अपनी बातें दूसरों को समझा पाते है, उसे ही मौखिक भाषा बोला जाता है। 

मौखिक भाषा अस्थायी होती है, बोलने के साथ ही यह समाप्त हो जाती है। इस भाषा का मूल रूप माना जाता है, इसके अलावा वक्ता और श्रोता का आमने सामने होना आवश्यक होता है। उदाहरण के लिए टेलीविजन, टेलीफोन, भाषण, वार्तालाप, नाटक और रेडियो, इत्यादि है।

2. लिखित भाषा

भाषा का दूसरा रूप लिखित होता है, जिसमें हम पत्रों में लिखकर अपने विचार और भाव दूसरों तक पहुंचाते है और दूसरा व्यक्ति उसे पढ़ कर हमारी बातों को समझता है। अर्थात, जिन अक्षरों और चिन्हों का उपयोग करके हम अपने मन की बात लिख कर बताते है, उसे लिखित भाषा कहा जाता है। लिखित भाषा की खोज बाद में हुई थी, जब मनुष्य की लगा की दूर रहने वाले लोगों तक या फिर अपने आने वाली पीढ़ियों को अपनी बातें कैसे बताएंगे, तो उन्होंने विभिन्न चिन्हों की सहायता से लिखना शुरू किया। आगे चल कर अक्षरों और लिपि का अविष्कार हुआ। 

इस भेद की मदद से हम अपने विचारों को अनंत काल तक सुरक्षित रख सकते है, इसके लिए वक्ता या श्रोता का आमने सामने रहना जरूरी नहीं है। भाषा का स्थायी रूप भी लिखित भाषा को ही बोला जाता है क्योंकि इसे संभाल कर रखा जा सकता है। उदाहरण के लिए लेख, पत्रिका, कहानी, जीवनी और अखबार, इत्यादि शामिल है। 

3. सांकेतिक भाषा

छोटे बच्चे या फिर दिव्यांग इशारों से अपनी बात एक दूसरे को समझाते है, इसे ही सांकेतिक भाषा कहा जाता है। जरूरी नहीं की इन भेद का प्रयोग सिर्फ खास वर्ग के लोग ही करें, इसका इस्तेमाल अन्य कई जगहों पर भी किया जाता है। जानवर भी अपनी बातें इशारों से ही समझाते है और उनकी शारीरिक मुद्रा से भी हम उनके विचारों को समझ सकते है। 

सांकेतिक भाषा में किसी प्रकार का शोर नहीं होता है और इसे सुरक्षा बलों में भी इस्तेमाल किया जा सकता है। उदाहरण के लिए ट्रैफिक लाइट, मैच में इस्तेमाल किए जाने वाले विभिन्न मुद्राएं, इत्यादि इसे परिभाषित करते है। 

भाषा के कौन कौन से अंग है?

भाषा के पांच मुख्य अंग होते है, जिन्हें विस्तार में परिभाषित किया जा सकता है। 

1. ध्वनि

हमारे मुख से निकलने वाली आवाज को ही ध्वनि कहा जाता है और इसका प्रयोग मौखिक भाषा के लिए किया जाता है। 

2. वर्ण

वह मूल ध्वनि, जिसके टुकड़े नहीं किए जा सकते है, वर्ण कहलाता है। वर्ण भाषा की सबसे छोटी इकाई होती है। 

3. शब्द

वर्णों के मेल से अर्थपूर्ण समूहों का निर्माण होता है, उसे शब्द कहते है। 

4. वाक्य

सार्थक शब्दों को सही क्रम में जोड़ने से जिस समूह का निर्माण होता है, उसे वाक्य कहते है। 

5. लिपि

भाषा को बोलने में लिखित रूप से व्यक्त करने के लिए जिन विशेष चिन्हों का उपयोग किया जाता है, उन्हें लिपि कहा जाता है। 

विभिन्न स्तरों पर भाषा के प्रकार

भाषा के भेद के अलावा, हम भाषा की क्षेत्रो के अनुसार भी नाम देते है। राज्य स्तर पर इसे राज्यभाषा, राष्ट्र स्तर पर राष्ट्रीयभाषा, सर्वप्रथम बोले जाने वाले भाषा की मातृभाषा के रूप में बांटा जाता है। 

1. राज्यभाषा क्या है?

हर राज्य में वहां की सरकार द्वारा प्रशासनिक कार्यों को संपन्न करने के लिए किसी एक भाषा का प्रयोग किया जाता है, उसे ही राज्यभाषा कहा जाता है। इस भाषा का चुनाव उस राज्य या प्रदेश के अधिकांश लोगों द्वारा उपयोग किए जाने वाले भाषा से किया जाता है। 

2. राष्ट्रभाषा क्या है?

राष्ट्रभाषा उसे कहते है, जिसे पूरे देश में सबसे अधिक प्रयोग किया जाता है। इस भाषा को ही अंतर्राष्ट्रीय या राष्ट्रीय स्तर पर हर कानूनी और ऑफिशियल कामों में इस्तेमाल किया जाता है। एक ही भाषा कई देशों की राष्ट्रभाषा हो सकती है, और इसके विस्तार को देखते हुए ही इसका चुनाव होता है। हमारे देश की राष्ट्रभाषा हमारे राष्ट्र की आत्मा की संज्ञा होती है। 

3. मातृभाषा क्या है?

जन्म लेते ही जब बच्चे बोलना शुरू करते है, तो सबसे पहली भाषा ही उनकी मातृभाषा होती है। मातृभाषा से ही हमें किसी व्यक्ति के राज्य या समाज के बारे में पता चलता है। मातृभाषा अधिकांश लोकल बोली ही होती है, जिसका उपयोग हम अपने घरों में ही करते है। 

लिपि क्या होती है?

भाषा के मौखिक या लिखित रूपों को व्यक्त करने के लिए जिन निश्चित चिन्हों या व्यवस्थित वर्णों का उपयोग किया जाता है, उसे ही लिपि कहते है। विभिन्न भाषाओं की लिपि भी विभिन्न होती है। हिंदी और संस्कृत की लिपि देवनागरी होती है और अंग्रेजी की रोमन होती है। पंजाबी के लिए गुरुमुखी का इस्तेमाल किया जाता है और उर्दू के लिए फारसी लिपि। 

लिपि और भाषा में क्या अंतर है?

  • विभिन्न भाषाओं की अपनी एक विशेष ध्वनि होती है, किंतु एक ही लिपि से कई भाषाएं लिखी जा सकती है। 
  • भाषा अपना प्रभाव जल्दी दिखाती है किंतु लिपि में प्रभाव विलंब से देखने को मिलता है। 
  • भाषा ध्वनि संकेतों की व्यवस्था होती है, पर लिपि वर्ण संकेतों का समूह होती है। 
  • भाषा सूक्ष्म रूप में होती है, वहीं लिपि स्थूल रूप में मिलती है। 
  • भाषा अस्थायी होती है क्योंकि इसका मौखिक रूप बोलते ही गायब हो जाता है, दूसरी तरफ लिपि को बिना लिखे व्यक्त नहीं किया जा सकता है, इसलिए यह स्थायी रूप में पाया जाता है। 

बोली किसे कहते है?

किसी विशेष स्थान के लिए विशेष भाषा का उपयोग किया जाता है, उसे ही बोली कहते है। बोली ही किसी भी व्यक्ति की सबसे पहली भाषा होती है। 

भाषा और बोली में क्या अंतर है?

  • भाषा का कोई क्षेत्र निर्धारित नहीं होता है, वहीं बोली कुछ प्रदेशों तक ही सीमित रहती है। 
  • भाषा पूर्ण रूप से विकसित होती है क्योंकि इसका विस्तार अनंत है, दूसरी तरफ बोली क्षेत्रों तक ही सीमित रहती है इसलिए यह विकसित नहीं होती है। 
  • राज्य के कार्यों में भाषा का प्रयोग किया जाता है, किंतु बोली सिर्फ घरों तक ही सीमित रहती है। 
  • भाषा को व्याकरण के अनुसार सुसज्जित करके बोला जाता है, बोली का कोई व्याकरण नहीं होता है। 
  • भाषा में साहित्य लेखन की पहुंच पूरी दुनिया में रहती है, पर बोली में साहित्य लेखन क्षेत्र तक ही रहता है। 

भारत में कौन कौन सी भाषा बोली जाती है?

हमारे संविधान के अनुसार, भारत में 22 भाषाओं की दर्जा दिया गया है, किंतु भाषाएं इससे भी अधिक होती है। अनुच्छेद 343 के अनुसार, संघ की राजभाषा हिंदी होती और लिपि देवनागरी को माना जाएगा। वह 22 भाषाएं जिन्हें हमारे देश में मान्यता प्राप्त है, वो निम्नलिखित है- हिंदी, संस्कृत, सिंधी, तमिल, कोंकणी, तेलुगु, मलयालम, कन्नड़, गुजराती, मराठी, राजस्थानी, पंजाबी, कश्मीरी, उर्दू, उड़िया, असमिया, नेपाली, बोडो, मैथिली, संथाली, मणिपुरी, बंगला, शामिल है। 

भाषा की विशेषताएं:

भाषा दिखने में एक छोटा सा शब्द लगता है, पर इसकी कर बड़ी बड़ी विशेषताएं होती है। आइए, जानते है उन्हीं खास विशेषताओं के बारे में, जो निम्नलिखित है। 

1. सृजात्मक 

विभिन्न स्वरों और व्यंजनों का उपयोग करके असीमित रूप में हम वाक्यों की रचना कर सकते है। आज तक किसी भी भाषा का अंतिम वाक्य नहीं लिखा गया है। 

2. विस्थापन 

भाषा की एक खास विशेषता है कि हम एक ही समय में तीनों कालों के बारे में बात कर सकते है, भूत, वर्तमान या भविष्य काल के बारे में बात एक ही समय में किया जा सकता है। 

3. परिवर्तनशीलता

समय के साथ शब्दों में बदलाव भी आते है, जैसे माताश्री की आज मम्मी या मॉम कहा जाता है, इसे ही परिवर्तन बोलते है। 

4. वाक्छल

कई वाक्य ऐसे होते है, जो व्याकरण की नज़र में सही होते है, किंतु उनका कोई अर्थ नहीं होता है। जैसे किताब से दुनिया घूमना। 

5. अंतर्विनियमता

इसका अर्थ है कि भाषा का अस्तित्व तभी संभव है, जब एक वक्ता और श्रोता साथ में हो, इनकी भूमिका समय अनुसार बदलती रहती है। 

निष्कर्ष

उम्मीद करते है आपको आज का लेख काफी पसंद आया होगा और आपको अपने सवालों के सारे जवाब भी मिल गए होंगे। हमारे साइट पर आपको ऐसे ही लाभदायक और जानकारी भरी पोस्ट मिलते रहेंगे। आपको यह आर्टिकल कैसा लगा, हमें कॉमेंट करके जरूर बताएं और इसी तरह हमारे साथ जुड़े रहें। 

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